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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग : 13 


शिवम के आने के बाद संपत और गायत्री की दुनिया ही बदल गई । पति पत्नी के बंधन तो पहले ही मजबूत होते हैं । प्रेम और विश्वास की नींव पर खड़े इस भवन को बच्चे अटूट बना देते हैं । दांपत्य के रिश्तों में बच्चा फेवीकॉल का काम करता है । इसमें अगर कहीं दरार आने लगती है या कोई टूट फूट होने लगती है तो बच्चा सीमेंट की तरह रिश्तों की पकड़ को और मजबूत कर देता है । कुछ पति पत्नी नदी के दो किनारों की तरह होते हैं जो जिंदगी भर एक निश्चित दूरी बनाकर चलते हैं पर मिलते नहीं हैं । ऐसे परिवारों में दोनों को नजदीक लाने का काम बच्चे भलीभांति करते हैं । शिवम के आने से गायत्री और संपत दोनों के रिश्ते और प्रगाढ़ हो गये । 
दिन हवा की तरह उड़े जा रहे थे । शिवम के साथ वक्त का पता ही नहीं चलता था । उसकी एक एक गतिविधि दोनों में नई ऊर्जा, प्रसन्नता और आशा का संचार कर जाती थी । उसकी एक मुस्कान पर दोनों निहाल हो जाते थे । बच्चे की मासूम हरकतें अनमोल उपहार की तरह होती हैं । इससे बड़ा खजाना शायद ही कोई हो । बच्चे की मासूमियत की कीमत क्या है , यह बात उस व्यक्ति से पूछो जिसके कोई बच्चा नहीं है । उसने किस किस मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में ढोक नहीं लगाई ? मरुस्थल में भटके हुए उस आदमी से पूछो जो प्यास के कारण बुरी तरह तड़प रहा हो । बचपन घर में बहारों का मौसम लेकर आता है । एक बच्चे के आने से सबका बचपन लौट आता है । संपत भी शिवम के साथ समय गुजारने के लिए ऑफिस से समय पर ही घर आ जाता था । उसका सारा समय गायत्री और शिवम के साथ गुजरने लगा । 

शिवम एक साल का हो गया था । पैंया पैंया चलने लगा था । दो कदम चलता फिर गिर पड़ता था । फिर खड़ा होता और फिर दो कदम चलकर फिर गिर पड़ता था । जिंदगी बाल लीलाओं के माध्यम से कैसे कैसे पाठ पढाती है । जीवन में उत्थान पतन आते हैं और आयेंगे ही , उन्हें आने से कोई रोक नहीं सकता है । वे जीवन का एक हिस्सा हैं । ऐसे में मनुष्य का कर्तव्य है कि वह बिना घबराये अपना काम करे और आगे बढता रहे । बच्चा गिरता है पर तुरंत खड़ा होकर चलने लगता है । दस बार गिरने के बावजूद वह तुरंत खड़ा होकर चलने लग जाता है । उसका हौंसला टूटता नहीं है । इसी तरह मनुष्य के जीवन में भी ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब उसे पराजय का सामना करना पड़ता है । तब मनुष्य को चाहिए कि वह बिना घबराये अपने लक्ष्य की ओर मजबूती से आगे बढता रहे । रास्ते में अनेक बाधाऐं आती हैं मगर उनसे बुद्धिमत्तापूर्ण सामना करते हुए निरंतर आगे बढते रहना है । एक न एक दिन मंजिल अवश्य मिलेगी, यह निश्चित है । 

संपत का स्थानांतरण "मंडरायल" थाने में हो गया था । यह थाना डकैतों के लिए मशहूर था । चंबल के "बीहड़" डकैतों के लिए बहुत अनुकूल थे । इन बीहड़ों में पुलिस का पहुंचना बहुत मुश्किल कार्य था । पुलिस के पहुंचने पर उसकी गतिविधियों पर दूर से ही निगरानी रखी जा सकती थी । डाकुओं को जैसे ही पता चलता कि पुलिस आ रही है , वे ऊंचे टीबों पर चढकर गोलीबारी शुरू कर देते थे । गोलियों की बौछार होने के कारण पुलिस के अनेक जवान मारे जाते थे और बाकी के जवान भाग खड़े होते थे । पुलिस के भाग जाने पर डकैत जीत का जश्न मनाते थे और इस तरह वे और भी अधिक क्रूर बनते जाते थे । 

पूरे इलाके पर डाकुओं का कब्जा था । एक तरह से डाकू ही वहां की सरकार थे । वे जो चाहते थे वही होता था । यह इलाका अपहरण, हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार जैसे अपराधों के लिए ही जाना जाता था । यहां पुलिस का खौफ नहीं अपितु डाकुओं का खौफ था । चंबल के "डांग" होने के कारण भूमि अधिकांशत : बंजर सी थी । ऊंचे ऊंचे टीले और घाटियों में खेती हो नहीं सकती थी । और कोई काम धंधा था नहीं । बेरोजगारी और भुखमरी ने लोगों को डाकू बना दिया था । इन डाकुओं का सरदार डाकू मोहर सिंह था । 

पूरे इलाके में डाकू मोहर सिंह का गजब का आतंक था । मंडरायल के सभी सेठों के यहां उसने डकैती कर रखी थी । कभी कभी तो वह करौली तक जाकर डकैती कर आता था । करौली की तवायफ "नाजनीन" के कोठे पर चोरी छिपे आता था वह । जिस रात उसे आना होता था उस दिन वह अपने विश्वस्त आदमी के हाथ नाजनीन को संदेश भिजवा देता था । फिर उस रात आम जनता के लिए नाजनीन के कोठे के दरवाजे बंद हो जाते थे । केवल मोहर सिंह और उसके साथियों के लिए ही उसका "मुजरा" होता था । नाच गाने के साथ शराब के दौर चलते और डाकुओं की बांहों में सौन्दर्य के कमल खिलते थे । नाजनीन का कोठा डाकुओं के लिए मुखबिरी के काम भी करता था । उस कोठे पर ज्यादातर पुलिस वाले भी आते थे जिनसे पुलिस की संपूर्ण गतिविधियों की जानकारी डाकू मोहर सिंह को मिल जाती थी । डाकू और पुलिस दोनों ही "नाजनीन" के मुरीद थे । सौन्दर्य का आकर्षण देवता और दानव दोनों को ही अपनी ओर खींच लाता है । 

पुलिस महकमे में भी डाकू मोहर सिंह के मुखबिर भरे पड़े थे । बिना पुलिस की मिली भगत के इलाके में कोई भी अपराध नहीं हो सकता है, यह निश्चित बात है । लूट और डकैती के माल में पुलिस का भी हिस्सा होता था इसलिए डाकू पुलिस से बेखौफ होकर डकैती किया करते थे । पूरे इलाके पर उनका हुक्म चलता था । अपहरण और फिरौती यही मुख्य काम था डाकुओं का । पुलिस की भूमिका "सौदेबाजी" की थी इससे ज्यादा नहीं । वह दोनों पक्षों में "फिरौती" की रकम निर्धारित करवाती थी बस । इस व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए ही संपत को वहां पर लगाया गया था । 

संपत गायत्री और शिवम को लेकर मंडरायल आ गया था । उसने डाकुओं की हिस्ट्री से ज्यादा पुलिस वालों की हिस्ट्री खंगाली । धीरे धीरे पता चलता गया कि थाने में डाकुओं के मददगार कौन कौन हैं । इनके विरुद्ध दो तरफा कार्यवाई की गई । एक तो इनका स्थानांतरण दूर कर दिया गया , दूसरे इन्हें चार्ज शीट भी दे दी गई । कुछ का निलंबन किया गया और कुछ को नौकरी से निकाल दिया गया । कुछ नये और जोशीले जवानों को वहां लगाया गया । 

संपत ने भी नाजनीन के कोठे की ख्याति सुनी थी । उसके सख्त मिजाज के कारण पुलिस वालों का अब कोठे पर जाना बंद हो गया था । नाजनीन की आय का स्रोत ज्यादातर ये पुलिस वाले ही तो थे । डाकुओं से आने वाला माल इसी कोठे पर ही तो चढता था । अब पुलिस वाले खुद भूखे मर रहे थे तो कोठे पर चढाने के लिए माल कहां से लेकर आते ? अब मुखबिरी भी लगभग ख़त्म सी हो गई थी । डाकू इससे बहुत परेशान हो रहे थे । उनका भी कोठे पर आना कम हो गया था । उन्हें अब पुलिस का डर सताने लगा था । 

क्रमश: 
श्री हरि 
20.12.22 

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6 Comments

shweta soni

22-Dec-2022 06:35 PM

बहुत सुंदर 👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Dec-2022 10:40 PM

धन्यवाद जी

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Gunjan Kamal

21-Dec-2022 08:49 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Dec-2022 10:40 PM

धन्यवाद जी

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Mahendra Bhatt

20-Dec-2022 06:20 PM

बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Dec-2022 09:54 PM

धन्यवाद आदरणीय 💐💐🙏🙏

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